सम्पूर्ण श्रीमद भगवद गीता उपदेश | Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi

श्रीमद भागवत गीता का सम्पूर्ण ज्ञान हिंदी में | सम्पूर्ण गीता सार इन हिंदी | Shrimad Bhagwat Geeta Saar In Hindi

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Shrimad Bhagwat Geeta Saar In Hindi

आज पूरी दुनिया में किसी ग्रन्थ की सबसे ज्यादा चर्चा होती है और किसी ग्रँथ को पूजा जाता है तो श्रीमद्भागवत गीता है। दुनिया के बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इसमें बताये गए ज्ञान को लेकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं।


आज पृथ्वी के हर कोने से लोग श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान को पाने की लालसा रखते हैं और इसमें बताये गए मार्ग पर चलने की कोशिश करते हैं।


इसके अंदर बताये गए ज्ञान कितना अनूठा और पवित्र है इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि कई विदेशी यूनिवर्सिटीज गीता पढ़ाने को लेकर काफी जोर दे रहे हैं। यहाँ तक कि कई कम्पनियों के मालिक भी गीता के अंदर छुपे ज्ञान को पाकर अपना जीवन बदल लिया।


दुनिया के सबसे चर्चित कम्पनियों में से एक गूगल के मालिक ने तो यहां तक कह दिया है कि मैं आज जहाँ भी हूँ इस गीता ज्ञान के बदौलत हूँ। क्या आप जानते हैं कि अपने अंदर छुपे सबसे अच्छे रूप को बाहर निकालने का सबसे बड़ा ग्रँथ है।


यहाँ तक कि दुनिया के कई सफल लोग अपने सफलता का असली कारण गीता को ही मानते हैं। इस गीता में ऐसी कौन सी ज्ञान छिपा है जो इस पूरी दुनिया को बदल कर रख सकता है। आइये भागवत गीता की पूरी जानकारी हम आज सम्पूर्ण गीता सार के माध्यम से प्राप्त करेंगे।


श्रीमद भगवद गीता की रचना और उसके अध्याय


श्रीमद् भगवद गीता के कुल 18 अध्याय है और इसका निर्माण मूल रूप से संस्कृत में परमात्मा के द्वारा हुआ था। पर समय बदलने के साथ संस्कृत भाषा का बोलचाल में इस्तेमाल होना बंद होता चला गया।


परन्तु समय बदलने के साथ श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद हिंदी में भी हुआ। जिसके बारे में आज हम श्रीमद्भागवत गीता के सम्पूर्ण सार को बहुत ही आसान भाषा में जानने की कोशिश करेंगे।


आपको बताते चलें कि भागवत गीता के रचयिता वेदव्यास जी हैश्रीमद्भागवत गीता का उपदेश लगभग 5000 ईसा पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध में दिया था। जो किसी जाति विशेष के लिए नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के कल्याण के लिए है।


सम्पूर्ण श्रीमद भगवद गीता सार इन हिंदी | Shrimad Bhagawad Geeta Quotes in Hindi

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सम्पूर्ण गीता सार

● वेदों में मैं सामवेद हूँ।

● सभी देवों में मैं इंद्र हूँ।

● सभी समझ और भावनाओं में मैं मन हूँ।

● सभी जीवित प्राणियों में मैं चेतना हूँ।

● मेरे लिए न कोई घृणित है और न ही प्रिय, परन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं वो मेरे साथ है और मैं उनके साथ हूँ।

● जो चीज हमारे हाथ में नहीं है, उसके विषय में चिंता करने से कोई फायदा नहीं है।

● इस दुनिया में केवल मन ही किसी का शत्रु और मित्र होता है।

● हम जो देखते हैं वो हम है और जो हम है उसी वस्तु को निहारते हैं। इसलिए जीवन में अच्छी और सकारात्मक चीजों को देखें और उनके बारे में सोचें।

● लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे, लेकिन सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान तो मृत्यु से बदतर है।

● जो आदमी किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ़ कर देता हूँ।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।

● एक उपहार तभी अच्छा और पवित्र लगता है जब वह दिल से किसी सही व्यक्ति को सही समय और सही जगह पर दिया जाए। साथ ही उपहार देने वाले व्यक्ति का दिल उपहार देने के बदले में कुछ पाने की उम्मीद न रखता हो।
जो मन को नियंत्रित नहीं कर सकते, उनके लिए मन शत्रु के समान काम करता है।

● किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन के साथ पूर्ण रूप से जीने से अच्छा है कि हम अपने स्वयं के भाग्य के साथ अपना जीवन खुद जियें।

● मृत्यु के समय जो व्यक्ति मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है वो व्यक्ति मेरे धाम को प्राप्त करता है।

● आपका अधिकार सिर्फ कर्म करने पर है, उससे फल प्राप्त करने पर नहीं। इसलिए हमेशा केवल कर्म करने की चेष्टा कीजिये फल प्राप्ति की नहीं।

● हमारा मन अशांत जरूर है और उसको अपने वश में नियंत्रित करना मुश्किल है लेकिन लगातार अभ्यास से उस पर काबू किया जा सकता है।

● फल प्राप्ति की अभिलाषा छोड़कर कर्म करने वाले लोग अपने जीवन में अधिक सफल होते हैं।

● इस दुनिया में ऐसा कोई आदमी नहीं है जिसने अच्छे कर्म किये हो और उनको बुरे फल की प्राप्ति हुई हो।

● क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि का नाश होता है। जब बुद्धि का नाश होता है तब तर्क का नाश होता है और जब तर्क का नाश होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।

● अगर आप अपने लक्ष्य को हासिल करने में असफल होते हैं तो अपनी रणनीति बदलिए न कि लक्ष्य।

● स्वार्थ से भरा हुआ कार्य इस दुनिया को कैद में कर कर रहा है। इसलिए अपने जीवन से स्वार्थ को दूर रखें।

● बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के मैं इस पूरी धरती की मधुर सुगंध हूँ, मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ, मैं यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ, मैं आठ वासुओं में अग्नि हूँ और शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ।

● हे अर्जुन! मैं बहुत, भविष्य और वर्तमान सभी प्राणियों को जानता हूँ लेकिन वास्तविकता में मुझे कोई नहीं जानता।

● बुरे कर्म करने वाले सबसे नीच व्यक्ति और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा और मुझे पाने का प्रयास नहीं करते हैं।


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श्रीमद भागवत गीता श्लोक इन हिंदी | Shrimad Bhagwat Geeta Suvichar In Hindi


● जो लोग अपने काम की सफलता के लिए कामना करते हैं वो निःसन्देह देवताओं की पूजा करें।

● जो लोग सभी इच्छाओं की त्याग कर देते हैं उसे परम् शांति की प्राप्ति होती है।

● जब किसी व्यक्ति को अपने काम में सुख की अनुभूति होती है, तब उनका काम अवश्य सफल होता है।

● मैं भले ही इस दुनिया का रचयिता हूँ लेकिन सबको इस बात का मालूम होना चाहिए कि मैं कुछ नहीं करता और मैं पूर्णतः अनन्त हूँ।

● जो व्यक्ति आध्यत्मिक जागरूकता के अंतिम चरण तक पहुँच चुके हैं उनका बस एक ही मार्ग होता है- निःस्वार्थ कर्म।

● बुद्धिमान व्यक्ति को इस समाज के कल्याण के लिए बिना शक्ति के काम करना चाहिए।

● इंद्रियों की तुलना में कल्पना सुखों का शुरुआत है और अंत भी जो दुःख को जन्म देता है।

● जो व्यक्ति मेरा हमेशा स्मरण और एकाग्र मन से मेरी पूजन करता है, मैं व्यक्तिगत रूप से उसके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ।

● हे अर्जुन! हमने एक साथ कई जन्म लिए हैं लेकिन मुझे याद है तुम्हे नहीं।

● कर्म मुझे बांध नहीं सकता, क्योंकि मुझे कर्म के बाद फल प्राप्ति की इच्छा नहीं होती है।

● तुम उसके लिए शोक करते हो जो वास्तव में शोक करने के योग्य नहीं है और फिर भी ज्ञान की बातें करते हो। हे अर्जुन! बुद्धिमान व्यक्ति न जीवित और न ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।

● सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए खुशी न इस लोक में है और न ही किसी दूसरे लोक में।

● हे अर्जुन! भाग्यशाली योद्धा को ही ऐसा महायुद्ध करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

● बुद्धिमान व्यक्ति कभी किसी दुसरे पर निर्भर नहीं रहता है, बल्कि अपना हर रास्ता खुद बनाता है।

● मैं सभी प्राणियों को समान रूप से देखता हूँ। न तो मुझे कोई अधिक प्रिय है और न कोई कम। लेकिन जो मेरा प्रेम पूर्वक अराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं।

● सच्चे व्यक्ति के लिए गंदगी का ढेर हो या पत्थर और सोना सभी समान है।

● किसी दूसरे के काम को अच्छे से पूरा करने से अच्छा है खुद का काम पूरा करना, भले ही उस काम को करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़े।

● जिसके मन और आत्मा में एकता हो, जो क्रोध और इच्छा से मुक्त हो, जो खुद की आत्मा को सही मायने में जानता हो भगवान और परमात्मा उसको हमेशा शांति प्रदान करते हैं।


सम्पूर्ण भगवद गीता का ज्ञान हिंदी में | Shrimad Bhagwat Geeta Updesh In Hindi


● जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतना ही अटल सत्य है जितना कि मृत्यु होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो चीज तुम्हारे हाथ में नहीं है उसका कभी शोक मत करो।
जो व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है वहीं सही मायने में देखना जानता है।

● जिस व्यक्ति को दुःख से मन अशांत नहीं होता है, जिसको सुख की कोई आकांक्षा नहीं होती तथा जिसने राग, भय और क्रोध पर विजय पा लिया है ऐसा व्यक्ति आत्मज्ञानी कहलाता है।

● श्रेष्ठ व्यक्ति जैसा व्यवहार करता है दूसरे लोग भी उसके साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं। वे जो कहते हैं लोग उसी का अनुसरण करते हैं।

● हे अर्जुन! जब-जब दुनिया में धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तब-तब मैं अच्छे लोगों की रक्षा, दुष्टों का नाश और धर्म की रक्षा करने के अवतार लेता हूँ।
मौसम में जिस प्रकार परिवर्तन आता है ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन में भी उतार-चढ़ाव आता रहता है। इससे निराश नहीं होना चाहिए बल्कि इसका डंटकर सामना करना चाहिए।

● जो मानव इस शरीर का अंत होने से पहले ही काम और क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को अपने वश में कर लेते हैं वहीं आदमी योगी और सुखी होता है।

● जो व्यक्ति आध्यात्मिकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं उनका बस एक ही मकसद होता है- निःस्वार्थ कर्म।

● जो मनुष्य सभी कामनाओं और इच्छाओं को त्यागकर ममता रहित और अहंकार मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है उसे ही शांति प्राप्त होता है।

● जो किसी भी परिस्थितियों में न तो हर्षित होता है और न शोक करता है तथा जो शुभ और अशुभ कर्म का त्यागी है वैसा व्यक्ति मुझे अतिप्रिय है।

● आप जिस भी काम को करें उसको हमेशा भगवान को अर्पण कर दें। ऐसा करने से मनुष्य को अति आनंद को महसूस करेगा।

● जो व्यक्ति कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वही बुद्धिमान व्यक्ति कहलाता है।

● जिन्हें वेद के मधुर वाणी से अथाह प्रेम है उसके लिए वेदों का भोग ही सबकुछ है।

● चिंता से दुःख उत्पन्न होते हैं किसी और कारण से नहीं।

● जो आज तुम्हारा है वो कल किसी और का था परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हो बस यहीं प्रसन्ता तुम्हारे दुखों का कारण है।

● हे अर्जुन! तुम निश्चय ही शक्तिमान हो लेकिन तुम मेरे भक्तों का नाश नहीं कर सकते।

● यदि कोई अत्यंत दुराचारी व्यक्ति भी मुझे अनन्य भक्ति भाव से मेरा स्मरण करता है तो उसे भी साधु ही मानना चाहिए क्योंकि वो जल्दी ही धर्मात्मा हो जाता है।

● हे अर्जुन! तुम सदा मेरा स्मरण करो और अपना कर्तव्य करो। तुम इन तरह मुझमें अर्पण किये गए मन और बुद्धि से युक्त होकर निःसन्देह ही तुम मुझको प्राप्त होगे।

● हे अर्जुन! जैसे अग्नि किसी भी लकड़ी को जला देती है ठीक वैसी ही ज्ञान रूपी अग्नि कर्म के सारे बंधनों को भष्म कर देती है।

● अपने आप जो कुछ भी प्राप्त हो उसमें हमेशा संतुष्ट रहने वाला तथा ईर्ष्या से रहित सफलता और असफलता में हमेशा एक समान रहने वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी कर्म के बंधनों से नहीं बंधता है।

● जिसके मन और इन्द्रिय उसके वश में है, जिसने हर प्रकार के स्वामित्व का परित्याग कर दिया है ऐसा मनुष्य शरीर से कर्म करते हुए भी पाप मुक्त होता है और जर्म बंधन से मुक्त हो जाता है।


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श्रीमद भगवद गीता इन हिंदी | Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi


● हे अर्जुन! जो भक्त किसी भी मनोकामना से मेरी पूजा करता है मैं उनकी मनोकामना की अवश्य पूर्ति करता हूँ।

● हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य है। इसे जो मनुष्य भली भांति जान लेता है उसका मरने का बाद पुनः जन्म नहीं होता है बल्कि उसको परमधाम की प्राप्ति होती है।

● काम, क्रोध और लोभ ये जीव को नरक में ले जाने वाले तीन द्वार है। इसलिए इन तीनो का त्याग करना चाहिए।

● इंद्रियां इस शरीर से श्रेष्ठ होता है। इंद्रियों से परे मन और मन से परे बुद्धि है तथा आत्मा बुद्धि से भी अनन्त श्रेष्ठ है।

● इंद्रियां मन और बुद्धि काम के निवास स्थान कहे जाते हैं। ये काम इंद्रियां मन और बुद्धि को ढँककर मनुष्य को भटका देता है।

● जो मनुष्य बिना आलोचना से डरे श्रद्धा पूर्वक मेरे आदेश का पालन करते हैं वे सारे कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।

● मनुष्य कर्म को त्यागकर कर्म के बंधन से मुक्त नहीं होता है।

● केवल कर्म के त्याग मात्र से सिद्धि प्राप्त नहीं होती है।
कोई भी मनुष्य एक क्षण भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता।

● जो मनुष्य सब कामनाओं को त्यागकर इच्छा रहित विचरण करता है उसको परम् शांति की प्राप्ति होती है।

● जैसे जल में तैरती नाव को तूफान उसे अपने लक्ष्य से दूर ले जाता है वैसे ही इन्द्रिय सुख मनुष्य को गलत रास्ते पर ले जाता है।

● शांति से सभी दुखों का अंत होता है और शांति मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।

● क्यों व्यर्थ में चिंता करते हो, किस से व्यर्थ डरते हो, कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न तो पैदा होती है और न मरती है।

● हर काम का फल मिलता है।

● ऋषियों का चिंतन करने से ऋषियों का आशक्ति होती है, आशक्ति से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध उत्पन्न होता है, क्रोध से सम्मोहन और अविवेक उत्पन्न होता है, सम्मोहन से मन भ्रष्ट होता है, मन नष्ट होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य का पतन होता है।

● केवल कर्म करना ही मनुष्य के वश में है कर्मफल नहीं। इसलिए कर्मफल की आशक्ति में ना फसों।

● तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो, तुम यहाँ क्या लाये थे जो तुमने खो दिया, तुमने क्या पैदा किया था जो नाश हो गया। एक बात का हमेशा ध्यान रखों कि जो भी लिया यहीं से लिया, जो खोया यहीं से खोया इसलिए व्यर्थ में शोक करना छोड़ दो।

● सुख-दुख, लाभ-हानि और जीत-हार की चिंता न करके मनुष्य को अपने शक्ति के अनुसार कर्तव्य करना चाहिए। ऐसे बहुत से कर्म करने पर मनुष्य को पाप नहीं लगता।

● जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा।

● तुम भूतकाल को याद करके पश्चाताप न करो, भविष्य की चिंता न करो बल्कि वर्तमान के बारे में सोचो।

● हे अर्जुन! सभी प्राणी जन्म से पगले अप्रगट थे और फिर मृत्यु के बाद अप्रगट हो जायेंगे।

● परिवर्तन इस संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो वही तो जीवन है। पल भर में तुम अमीर बन जाते हो और पल भर में ही गरीब।

● मेरा-तुम्हारा, अपना-पराया ये सब अपने मन से मिटा दो फिर तुम सबके अपने बन जाओगे।

● शस्त्र इस आत्मा को नहीं मार सकती है, अग्नि इसको जला नहीं सकती, जल इसे गिला नहीं कर सकता है और वायु इसे सूखा नहीं सकता।

● जैसे मनुष्य अपने पुराने वस्त्रों को उतारकर दूसरे नए वस्त्र धारण करते हैं वैसे ही जीव मृत्यु के बाद अपने पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण कर लेता है।

● तुम अपने आप को भगवान को अर्पित कर दो यहीं सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वो भय, चिंता, सुख-दुःख से सर्वदा मुक्त रहता है।

● आत्मा न कभी जन्म लेती है और न कभी मरती है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता है।
न तो ये शरीर तुम्हारा है और न तुम शरीर के हो बल्कि ये अग्नि, जल, वायु, आकाश और पृथ्वी से मिलकर बना है और इसी में पुनः मिल जाएगा।

● जैसे इसी जन्म में जीवात्मा बाल्यकाल, युवा, और वृद्धावस्था को प्राप्त करती है वैसे ही जीवात्मा मरने के बाद नया शरीर प्राप्त करती है। इसीलिए वीर पुरुष को मृत्यु से घबराना नहीं चाहिए।

● हे अर्जुन! तुम ज्ञानियों के तरह बात करते हो लेकिन जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए उनके लिए तुम शोक कर रहे हो। ज्ञानी पुरुष किसी के लिए शोक नहीं करते हैं।

● हे अर्जुन! विषम परिस्थितियों में कायरता को प्राप्त करना श्रेष्ठ मनुष्यों के आचरण के विपरीत है। न तो ये स्वर्ग प्राप्ति का साधन है और न ही इससे कीर्ति प्राप्त होता है।

● यदि व्यक्ति विश्वास के साथ एकाग्रचित्त होकर लगातार किसी चीज के बारे में लगातार कर्म और चिंतन करे तो वो कुछ भी बन सकता है।

● उससे कभी मत डरो जो वास्तविक नहीं है क्योंकि न तो वह कभी था और न कभी होगा। जो वास्तविक है वो हमेशा रहेगा और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता है।


हम उम्मीद करते हैं कि आपको सम्पूर्ण श्रीमद भगवद गीता सार का ज्ञान हिंदी में प्राप्त हो गया होगा। आपको गीता की कौन सी श्लोक सबसे ज्यादा प्रेरित करती है आप कमेंट करके जरूर बताइएगा।


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भगवान शिव की दो अनसुनी धार्मिक कहानियां।

परोपकारी राजा शिबी की बहुत ही रोचक अनुसनी कहानी।


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